भारतीय साहित्य में योग पर राष्ट्रीय परिसंवाद 20 जून को दिल्ली में

भारतीय साहित्य में योग पर राष्ट्रीय परिसंवाद 20 जून को दिल्ली में

भारतीय साहित्य में योग पर राष्ट्रीय परिसंवाद 20 जून को दिल्ली में भारतीय साहित्य में योग विषय पर राष्ट्रीय परिसंवाद 20 जून को होगा साहित्य अकादमी अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर 'भारतीय साहित्य में योग' विषयक एक राष्ट्रीय परिसंवाद 20 जून को आयोजित कर रही है। परिसंवाद में भारतीय सभ्यता में योग दर्शन की 3000 ईसा पूर्व से उपस्थित परंपरा को रेखाकित किया जाएगा। सिंधु सभ्यता से लेकर वर्तमान तक योग ने भारतीय उपमहाद्वीप की संस्कृति को गहरे तक प्रभावित किया है। संस्कृति और कला में इसका प्रभाव और ज्यादा रूप से देखा जा सकता है। जैन और बौद्ध धर्मो पर भी योग का गहरा प्रभाव है। साहित्य अकादमी के सभागार

भारत में योग: आदि युग से मोदी युग तक

भारत में योग: आदि युग से मोदी युग तक

भारत में योग: आदि युग से मोदी युग तक भारत में योग की परंपरा उतनी ही पुरानी है जितनी कि भारतीय संस्कृति। किसी न किसी रूप में इसके साक्ष्य पूर्व वैदिक काल और हड़प्पा-मोहनजोदड़ो की सभ्यताओं से भी पहले से ही मौजूद रहे हैं। सालों में गिना जाय तो इसका इतिहास 10 हजार साल से भी पुराना बताया जाता है। यूं समझ लीजिए की भारतीय जीवन में योग की साधना हर काल में होती आई है। प्राचीन ग्रंथों के अनुसार योग जीवन को अच्छे ढंग से जीने का विज्ञान है। ये संस्‍कृत के शब्‍द ‘युज’ से बना है, जिसका अर्थ है मिलन, अर्थात् मानवीय चेतना या आत्मीय चेतना का सार्वभौमिक चेतना के साथ सामंजस्य। उस युग में हमारे ऋषि-मुनियों ने

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