गौमाता आयुर्वेद चिकित्सा की जननी हैं

गौमाता और आयुर्वेद चिकित्सा

गौमाता की सहायता से चिकित्सा कार्य के अनुभूत प्रयोग वर्णित हैं। इन्हें ध्यान में लेने पर सहज ही समझा जा सकता है 

सभी जीव- जन्तुओं तथा दुग्धधारी पशुओं में केवल गाय ही एक ऐसा पशु है जिसकी 180 फुट लम्बी आँत होती है। जो गाय द्वारा खाए गए भोजन को पचाने में सहायक होता है। गाय की रीढ़ की हड्डी के भीतर सूर्यकेतु नामक नाड़ी होती है जिस पर सूर्य की किरण के स्पर्श से स्वर्ण तत्व का निर्माण होता है गाय के एक क्वंटल (100 किलोग्राम) दूध में एक माशा स्वर्ण पाया जाता है। गाय के दूध व घी का रंग पीला होने का भी यही कारण है। यह पीलापन कैरोटीन तत्व के कारण होता है। कैरोटीन तत्व की शरीर में कमी होने पर ही मुख, फेफड़े तथा मूत्राशय में कैंसर होने के अवसर ज्यादा होते हैं। यह कैरोटीन तत्व गाय के दूध में भैंस के दूध से 10 गुणा ज्यादा होते हैं। एक बात और जिसे वैज्ञानिकों से शोध किया कि भैंस के दूध को गर्म करने पर पौष्टिक तत्व ख़त्म हो जाते हैं जबकि गाय के दूध को गर्म करने पर वह ख़त्म नहीं होते।

आयुर्वेद में पंचगव्य  शब्द का प्रयोग होता है, जो पांच महत्वपूर्ण गोवंशीय उत्पादों का उल्लेख करता है। ये उत्पाद हैं- दूध, दही, घी, गोमूत्र और  गोबर।  कई बीमारियों के उपचार के  लिए इनका उपयोग या तो अलग-अलग किया जाता है या दूसरी जड़ी-बूटियों के साथ मिलाकर इन्हें प्रयोग में लाया जाता है।। इतना ही नहीं शोध से यह भी पता चलता है कि गौमूत्र में कारबोलिक एसिड होता है जो कि कीटाणुनाशक होता है तथा शुद्धता एवं स्वच्छता बढ़ाता है। इसके अलावा भी अनेक परीक्षणों से पता चला है कि गौमूत्र में नाइट्रोजन, फास्फेट, यूरिक एसिड, पोटेशियम, सोडियम तथा लैक्टोज आदि तत्व होते हैं जो मनुष्य के शरीर को हष्ट- पुष्ट बनाते हैं। गाय के गोबर तथा मूत्र को मिलाने से प्रोपलीन ऑक्साइड गैस बनती है जो बरसात लाने में सहायक मानी जाती है और एक दूसरी गैस इथलीन ऑक्साइड भी पैदा होती है जो ऑपरेशन थियेटर में काम आती है।

 घी में वैक्सीन एसिड, ब्युटिक एसिड, वीटा कैरोटीन जैसे तत्व पाये जाते हैं जो शरीर में पैदा होने वाले कैंसरीय तत्वों से लड़ने की क्षमता रखते हैं। वैज्ञानिकों द्वारा यह भी माना गया कि गाय के 10 ग्राम घी को दीपक में जलाने, गोबर के जलते उपलों पर डालने अथवा यज्ञ में आहुति डालने से लगभग एक टन प्राण वायु उत्पन्न होती है तथा उससे वायुमंडल में एटोमिक रेडिएशन का प्रभाव काम हो जाता है। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण भोपाल में 1984 में यूनियन कार्बाइड कारखाने से गैस रिसाव के समय देखने को मिला। जिन घरों में गाय के गोबर, मूत्र, दूध व घी का प्रयोग था वहां गैस का प्रभाव काम पाया गया था।

गाय के दूध का रासायनिक विश्लेषण करने पर उसमे 87.3 %पानी, 4 % प्रोटीन्स, 4 % वसा, 4 %कार्बोहाइड्रेट्स, 0. 7 %मिनरल्स तथा ऊर्जा यानी कैलोरी 65 % पायी जाती है। इसके अलावा भी कैल्शियम, सोडियम, मैग्नीशियम, पोटेशियम, क्लोरीन, लौह तत्व व विटामिन ए, बी, सी, डी भी पाये जाते हैं तथा विटामिन ए की अधिकता होती है जो शरीर को सशक्त बनाने में अधिक सहायक है।

गाय के दूध और घी में strontian नामक तत्व है जो अणु विकरण का प्रतिरोधक है। गाय के दूध में सेरीब्रोसाडस तत्व है जो बुद्धि के विकास में सहायक है। गाय का दूध शीतल होने के कारण पित्त विकार, अल्सर, एसिडिटी तथा दाह रोगों में लाभदायक, सुपाच्य, माताओं, दुर्बल, वृद्ध, बीमार व बच्चों के लिए गुणकारी है। जलोदर नामक बिमारी से ग्रस्त व्यक्ति के लिए पानी पीना सख्त मना होता है मगर वह भी गाय का दूध पीकर स्वस्थ हो सकता है।

गाय, हमारे जीवन और जैव- विविधता के लिए महत्वपूर्ण है। मवेशी क्षेत्र में गरीबी दूर करने और रोजगार के अवसर उत्पन्न करने की भारी संभावनाएं हैं। इसे हर स्तर पर बढावा दिया जाना चाहिए।