बौद्ध-दर्शन में योग
बौद्ध-दर्शन और योग
उपनिषदों ने बैदिक कर्मकाण्ड में आयी जटिलता एवं विकृतियाँ की निन्
और आध्यात्मिक अनुभव को ही परम् पुरूषार्थ घोषित कर साधारण जन-मा
नयी धार्मिक क्रान्ति पैदा की उसी क्रान्ति को कालान्तर में महावीर और गा
ने विस्तृत रूप देकर नयी धार्मिक चेतना का विकास किया। डा0 राधा कृष्ण
सार-‘‘बुद्ध ने उपनिषदों के दार्शनिक सिद्धान्तों को जो इस समय कुछ थोड
हुए लोगों तक ही सीमित थे, जनसाधारण में प्र ्रचारित करने में सहायता दी
धर्म का उद्देश्य यह था कि उपनिषदों के आदर्शवाद को उसके उत्कृष्ट रूप
कार करके उसे मनुष्य जाति की दैनिक आवश्यकताओं के लिये उपयोगी ब
जायें। ऐतिहासिक बौद्ध-धर्म का तात्पर्य है उपनिषदों का जनसाधारण में प
कह सकते हैं कि ब्राह्ममण धर्म के अपने मौलिक सिद्धान्तों में वापस लौट ज
नाम बौद्ध धर्म है। बुद्ध का उद्देश्य एक सुधारक के रूप में उपनिषदों
लित सिद्धान्तों को नये ढाँचे में परिवर्तित करके, उसमें प्रतिपादित सत्यों को
ान्य में लाना था।’’
बौद्ध धर्म के संस्थापक भगवान बुद्ध एक महान् योगी थे। उन्होंने स्वयं म
अन्वेषण कर समाध्स्थि होकर ज्ञान-लाभ किया। पूर्ववती अनेक जन्मों के अ
िय से अभिसंस्कृत चित्त से युक्त बोधिसत्त्व बाल्यावस्था मंे ही समाधिस्थ हो ज
जन्म, रोग, जरा, मृत्यु आदि के चिन्तन पूर्वक संसार की अनित्यता को मान
व्र विरक्ति होने पर युवावस्था में ही उन्होंने प्रवज्या ग्रहण की।
सत्य के अनुसन्धान के मार्ग में भगवान बुद्ध ने आलारकलाम एवं उद्रक
से योग-विद्या का उपदेश प्राप्त किया। परन्तु उससे उन्हें पूर्ण सन्तुष्टि प
ीं हुई।
सत्यज्ञान की खोज में बुद्ध ने ‘अरूवेला’ पहुँचकर वहाँ के अरण्यगत रमण्
र्ग को देखकर सत्य के साक्षात्कार के लिए 6 वर्षाें तक कठोर तपस्या की।
युग मंे मन की एकाग्रता की सिद्धि के लिए कठोर तपस्या की प्रधानता थी। उस
समय उन्हें अमृत्व की प्राप्ति में कठोर तपस्या की निरर्थकता का आभास हुआ।
अन्त में वह निरंजन नदी के किनारे पर बोधिवृक्ष के नीचे अचल आसन
लगाकर सम्बोधि प्राप्त करने के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ होकर बैठ गये। रात्रि की पुण्य
बेला में गौतम बुद्ध ने समस्त आस्रवों के क्षय पूर्वक समाधि लाभ द्वारा बुद्धत्व पद
की प्राप्ति की। वह वृक्ष भी बोधिवृक्ष के नाम से विख्यात हुआ। सम्बोधि के अनन्तर
चार सप्ताह तक बुद्ध विमुक्ति सुख प्रतिसंवेदी बने रहे।