सम्यक प्रज्ञा
सम्यक प्रज्ञा का अर्थ
उन दिव्य नियमों की समझ जिससे सृष्टि चलती है .ऐसे १२ नियम हैं.
१. कर्म का नियम :- हम जो बोते हैं, वही काटते हैं . कबीर साहब कहते हैं - " बोया पेड़ बबूल का, तो आम कहां से होय ." तुलसीदास कहते हैं- "जो जस करई सो तस फल चाखा."
२. सहनिर्भरता का नियम :- पूरी सृष्टि परस्पर सहनिर्भर है . सूरज से वनस्पतियां उगती हैं . वनस्पतियां जीव-जंतुओं का भोजन हैं. जीव-जंतुओं को अपनी विविध आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए एक-दुसरे की जरुरत है
३. चुनाव का नियम :- चुनाव अच्छे-बुरे के बीच नहीं है. चुनाव कम बुरे और ज्यादा बुरे के बीच है.
४. मध्य का नियम :- ऋषि कहता है - "अति सर्वत्र वर्जयेत ." बहुधा लोगों का निर्णय अति पर होता है -"फाइट और फ्लाइट" लेकिन दोनों के पार मध्य में निर्णय की संभावना रहती है . गौतम बुद्ध ने मध्य मार्गी अपनाने की सलाह दी है.
५. संतुलन का नियम :- सृष्टि द्वंद्वात्मक है. दिन है, तो रात है. सुख है, तो दुःख है. अच्छा है, तो बुरा है. दोनों वस्तुतः एक ही सिक्के के दो पहलू हैं. तुलसीदास कहते हैं- " जड़- चेतन गुन-दोषमय विश्व किन्हीं करतार."
६. पूरक का नियम :- चुंबक के दो ध्रुव हों कि जन्म-मृत्यु हो, देखने में दोनों विपरीत लगते हैं, मगर दोनों एक दूसरे के पूरक हैं.
७. पुरुषार्थ का नियम :- एक पुरानी कहावत है- " god helpes those who help themselves." " राम सहायक उनके होते , जो होते हैं स्वयं सहायक."
८. प्रतिध्वनि का नियम :- संसार हमारी प्रतिध्वनि है. हम दूसरे के साथ जैसा बर्ताव करते हैं, वैसा ही व्यवहार कई गुना बढ़कर हमें वापस मिलता है.
९. वृत्त का नियम :- जीवन रैखिक नहीं, वृत्तीय है. जब घाटी आये, तो जानना कि एक शिखर तुम्हारा इन्तजार कर रहा है. कोई शिखर आये, तो समझ लेना कि एक घाटी प्रतीक्षारत है.
१०. जीत का नियम :- सत्य के सामने चाहे जितनी भी चुनौतियाँ हों, अंततः सत्य ही जीतता है. ऋषि कहता है-" सत्यमेव जयते."
११. खोज का नियम :- मंजिल भीतर है, बाहर नहीं. परमात्मा का अनुभव पहले घटाकाश में होता है, फिर बहिराकाश में. इसलिए अध्यात्म वस्तुतः स्वयं कि खोज है.
१२. आनंद का नियम :- आनंद परकेंद्रित नहीं, स्वकेंद्रित है. विषयकेंद्रित नहीं, आत्मकेंद्रित है. सकारण नहीं, अकारण हैं.
(सिद्धार्थ उपनिषद् 476)