होम्योपैथिक चिकित्सा पद्धति
हमारा शरीर प्रकृति की एक अद्भुत देन है। समय- समय पर यह शरीर कई तरह की व्याधियों का सामना करता रहता है। व्यक्ति इन व्याधियों के निदान के लिए कई उपाय करता है, नुस्खे आजमाता है। शरीर को रोग रहित करने के लिए अनेक चिकित्सा पद्धतियां प्रचलित हैं। जैसे- एलोपैथी, आयुर्वेद,यूनानी और होम्योपैथी इत्यादि। बेशक एलोपैथी और आयुर्वेदिक पद्धति का आजकल बोलबाला है, पर होम्योपैथी पद्धति भी भारत में अब अपने पैर पसार रही है। होम्योपैथिक चिकित्सा पद्धति एक जानी मानी चिकित्सा पद्धति है। यह औषधियों के विषय में ज्ञान और उनके अनुप्रयोग पर आधारित चिकित्सा है। होम्योपैथी ‘समः समं शमयते ’ के सिद्धांत पर काम करती है, जिसका अर्थ है समान की समान से चिकित्सा। अर्थात तत्त्व जिस रोग को पैदा करता है, वही उसको दूर करने की क्षमता भी रखता है। इस पद्धति में रोग को जड़ से मिटाया जाता है।
होम्योपैथी चिकित्सा विज्ञान के जन्मदाता डा. क्रिश्चियन फ्रेडरिक सैम्यूल हेनीमैन हैं। यह चिकित्सा ‘समरूपता के सिद्धांत’ पर आधारित है। इस सिद्धांत के अनुसार औषधियां उन रोगों से मिलते- जुलते रोग दूर कर सकती हैं, जिन्हें वे उत्पन्न कर सकती हैं। अतः रोेग अत्यंत निश्चयपूर्वक जड़ से, अविलंब और सदा के लिए नष्ट उसी औषधि से हो सकता है, जो मानव शरीर में रोगों के लक्षणों से अत्यंत मिलते- जुलते सभी लक्षण उत्पन्न कर सके
होम्योपैथिक चिकित्सा पद्धति में चिकित्सक का मुख्य कार्य रोगी द्वारा बताए गए जीवन इतिहास एवं रोग लक्षणों को सुन कर उसी प्रकार के लक्षणों को उत्पन्न करने वाली औषधि का चुनाव करना है। रोग लक्षण और औषधि लक्षण में जितनी समानता होगी, रोगी के स्वस्थ होने की संभावना भी उतनी ज्यादा होगी। इस क्षेत्र में चिकित्सक का अनुभव सबसे बड़ा सहायक होता है। पुराने और जटिल रोगों के इलाज में चिकित्सक और रोगी दोनों को ही धैर्य रखने की जरूरत होती है।