गर्भवती एवम स्तनपान कराने वाली स्त्रियों का आहार एवम पोषण
गर्भवती एवम स्तनपान कराने वाली स्त्रियों का आहार एवम पोषण
गर्भावस्था में शिशु अपने विकास एवम पोषण संबंधी आवश्यकताओ की पूर्ति के लिए पूर्णत: माता पर ही निर्भर करता है। इसलिए इस अवधि में संतुलित आहार का अधिक महत्व है। गर्भावस्था में अतिरिक्त पोषण की आवश्यकता बच्चे तथा माता की निम्नलिखित क्रियाओं के लिए होती है:
1॰ भ्रूण के विकास और वृद्धि के लिए।
2॰ गर्भाशय, गर्भनाल, स्तन आदि के विकास के लिए।
3॰ प्रसव काल एवम दूध पिलाने के समय पोषण पदार्थों का संग्रह करना इत्यादि क्रियाओं के लिए।
गर्भवती स्त्रियों का भोजन संतुलित होना चाहिए। उसमें शरीर रक्षक तत्व जैसे विटामिन, खनिज लवण और शरीर वर्धक तत्व जैसे प्रोटीन, कैल्शियम, लोहा अधिक मात्रा में होना चाहिए।
प्रोटीन- गर्भवती स्त्री के भोजन में ऐसे पदार्थों का समावेश होना चाहिये, जिसमें सभी आवश्यक अमीनो एसिड से युक्त प्रोटीन पाई जाती हो। प्रोटीन की आवश्यकता गर्भवती स्त्री को अपने तंतुओं के निर्माण व मरम्मत के लिए तथा भ्रूण के विकास के लिए होती है। साधारण दिनों में स्त्री को 45 ग्राम प्रोटीन प्रतिदिन की आवश्यकता होती है। एक गर्भवती स्त्री को अपने भोजन में प्रतिदिन 14 ग्राम प्रोटीन की मात्रा बढ़ा देनी चाहिए।
कैलोरी- कैलोरी की मात्रा मुख्यत: स्त्री के दैनिक परिश्रम तथा शरीर के भार पर निर्भर करती है। साधारणत: एक कम काम करने वाली महिला को 900 कैलोरी, साधारण काम करने वाली महिला को 2200 कैलोरी, भारी काम करने वाली महिला को 3000 कैलोरी की आवश्यकता पड़ती है। एक स्त्री को गर्भ के अंतिम 04 महीनों में 400 कैलोरी की मात्रा बढ़ा लेनी चाहिए।
खनिज लवण- बच्चे की हड्डियों का विकास गर्भ के अंतिम दो महीनों में होता है। इसके लिए कैल्शियम और फास्फोरस की आवश्यकता पड़ती है। शिशु माँ के शरीर से कैल्शियम का शोषण करता है। गर्भवती माँ समुचित मात्रा में कैल्शियम न लें, तब भी शिशु अपनी आवश्यकता पूरी कर लेता है। परंतु माता की अस्थियाँ व दाँत कैल्शियम की कमी से कमजोर हो जायेंगे। साधारण दिनों में 0.4-0.5 मिलीग्राम कैल्शियम की आवश्यकता होती है। स्त्रियों में कैल्शियम तथा विटामिन-डी की कमी से ओस्टोमलेशिया रोग हो जाता है। हड्डियाँ कमजोर होकर मुड जाती है और जरा सी चोट से टूट जाती है। भोजन में प्रतिदिन इसकी मात्रा 1.0 से 1.5 ग्राम तक होनी चाहिए।
विटामिन- विटामिन के अभाव से गर्भवती स्त्री के स्वास्थ्य तथा शिशु की वृद्धि पर बुरा प्रभाव पड़ता है। थाइमिन कार्बोज के पाचन में सहायता करता है। यह हृदय तथा मस्तिष्क को शक्ति देता है तथा नसों को मजबूत बनाता है। हर 1000 कैलोरी पर 0.5 मि॰ली॰ थाइमीन की आवश्यकता होती है। 'राइवोफ़्लोविन' तथा विटामिन 'ए' की कमी से शिशु अंगों के विकास में कोई न कोई कमी रहने की आशंका रहती है। 'बी' कॉम्प्लेक्स विटामिन की अधिकता से, विशेषकर 'थायमीन' की अधिक मात्रा से, यह देखा गया है, की गर्भवती स्त्री अधिक प्रसन्न रहती है तथा उसकी छोटी छोटी शिकायतें जैसे उल्टी आना, जी मिचलाना, कब्ज़ होना आदि नहीं रहती। विटामिन 'सी' तंतुओं की रचना के लिए आवश्यक है। विटामिन 'के' के अभाव में शिशु में प्रोथाम्बिन का निर्माण पूरी मात्रा में नहीं होता है। अत: बच्चे के जन्म से पहले माता को विटामिन 'के' अवश्य देना चाहिए। विटामिन 'ई' की कमी से शिशु की अस्थियाँ विकृत हो जाती है।
गर्भवती तथा स्तनपान कराने वाली स्त्रियों के लिए खाद्य पदार्थों की मात्रा
वर्ग गर्भवती महिला
मात्रा (ग्राम) स्तनपान कराने वाली महिला
मात्रा (ग्राम)
चावल, गेहूं तथा अन्य अनाज 350 400
दालें तथा सूखी फलियाँ आदि 70 70
हरी पत्तेदार सब्जियाँ 150 150
अन्य सब्जियाँ 125 125
फल 30 30
दूध तथा उससे बने पदार्थ 325 325
गुड़ तथा चीनी 40 40
घी, तेल तथा मक्खन 35 35
(इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च द्वारा प्रमाणित)
गर्भवती तथा स्तनपान कराने वाली महिला के भोजन का चुनाव
दालों का भोजन में विशेष महत्व है। गर्भवती तथा स्तनपान कराने वाली महिला को आंपने भोजन में उचित मात्रा में दालें लेनी चाहिए। अंकुरित दालों का भोजन में समावेश बहुत उपयोगी है। अंकुरित करने से दालें न केवल जल्दी पच जाती है अपितु उनमें पौष्टिक तत्व भी कई गुना बढ़ जाते है।
दूध व दूध से बने पदार्थ पनीर, दही, छाछ आदि गर्भवती तथा स्तनपान कराने वाली स्त्रियों के आहार में होने चाहिए। दूध को जितनी अधिक मात्रा महिला ले सके उतना ही उसके लिए अच्छा है।
हरी सब्जियों का भी गर्भवती व स्तनपान कराने वाली माताओं के आहार में विशेष रूप से प्रयोग होना चाहिए। इससे लौह तत्व की प्राप्ति विशेष मात्रा में होती है और पेट साफ रेहता है। नींबू, संतरे, नारंगी, अमरूद, टमाटर आदि फलों में से किसी एक का प्रयोग प्रतिदिन भोजन में अवश्य करना चाहिए।
इन स्त्रियों को अपने भोजन में मिश्रित अनाज, जड़ वाली सब्जियाँ, घी, तेल, चीनी और गुड़ का भी उचित मात्रा में प्रयोग करना चाहिए। गुड़ का प्रयोग चीनी की अपेक्षा अधिक लाभकारी होता है। क्योंकि यह सस्ता होता है तथा इसमें पोष्टिक तत्व की मात्रा भी अधिक होती है।
गर्भवती स्त्रियों को अधिक मिर्च, मसाले तथा तीव्र गंध वाले पदार्थ नहीं खाने चाहिए, क्योंकि इससे जी मिचलता है। भोजन में नमक की मात्रा कम कर देनी चाहिए इससे पैरों में सूजन नहीं आती।
गर्भावस्था में जल भी अधिक मात्रा (4 से 6 गिलास) में लेना चाहिए क्योंकि यह शरीर के अंदर पैदा किए हुए विष को श्वास, मूत्र तथा पसीने के रूप में शरीर से बाहर निकालने में सहायता करता है।
तले हुए भोज्य पदार्थों का सेवन कम करना चाहिए।
डॉ आर के सिंह
अध्यक्ष कृषि विज्ञान केन्द्र बरेली
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