नाभि चक्र और उसके कार्य

नाभि चक्र क्या है
हमारे हजारों वर्ष पुराने ऋषि-मुनिओं के विज्ञानं का मुख्य आधार हमारे शारीर में स्थित सात चक्र हैं... जिन्हें हम अपनी ऊर्जा का केंद्र भी कह सकते हैं। यह मूलाधार से लेकर सहस्त्रार्थ तक, सात चक्र हैं। हमें होने वाली सभी प्रकार की शारीरिक और मानसिक रोग किसी न किसी चक्र से जुड़े होते हैं। यह चक्र जितने बैलेंस, अलाइन और एलाइन होगें, हम उतने ही शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ और निरोगी रहेगें। हमारा प्राचीन विज्ञान जैसे: आयुर्वेद, योग, अध्यात्म, ज्योतिष, रत्न चिकित्सा, सुगंध चिकित्सा, मन्त्र चिकित्सा आदि सभी प्रकार की पद्धतियाँ इन्ही चक्रों को बैलेंस, अलाइन और एक्टिवेट करके हमें शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रखने का एक मार्ग है। इन्हीं चक्रों को आधार बनकर काम कर रहा है। वह चक्र जिस पर हम सबसे पहले काम कर रहे हैं वह है, निचे से तीसरा चक्र, "नाभि चक्र"
सभी चक्रों में नाभि चक्र का ही चयन सबसे पहले क्यों किया गया? वह आगे बताते हैं......
नाभि चक्र
"नाभि चक्र" जो की हमारा निचे से तीसरा चक्र है उसे कई अन्य नामों से भी से जाना जाता है जैसे: इंग्लिश मे "सोलर प्लेक्सस", हमारे उत्तरी भारत के कई राज्यों मे "धरन", नाभि और आध्यात्मिक क्षेत्र में "मणिपुर चक्र" के नाम से भी जाना जाता है अगर हम इस्लाम धर्म में देखें तो वहां इसे "आलम-ए-लाहोत" मतलब स्वर्ग का द्वार भी कहा गया है।
हमारा नाभि चक्र हमें शारीरिक और मानसिक दोनों ही तरह से प्रभावित करता है।
प्रत्यक्ष रूप से "नाभि चक्र" हमारे एड्रेनल ग्लांड्स (अधिवृक्क ग्रंथि), स्टमक (अमाशय), पैन्क्रीअस (अग्न्याशय), लिवर (यकृत), गॉल्ब्लैडर (पित्ताशय), नर्व्ज़ (तंत्रिकाएँ), मसल (मांसपेशी), नर्वस सिस्टम (तंत्रिका तंत्र) को प्रभावित करता है परन्तु अप्रत्यक्ष रूप से यह हमारे पुरे शरीर को किसी न किसी रूप मे प्रभावित करता है।
इसी प्रकार से मानसिक रूप से यह हमारे आत्म सम्मान, इच्छाशक्ति, आत्मविश्वास, उत्साह, हास्य, शारीरिक ऊर्जा, नाड़ियों की अतिसंवेदनशीलता, आत्म विवेक के केंद्र आदि भावनाओं को भी नियंत्रित करता है।
नाभि चक्र के अव्यवस्थित होने से हमारे हमारे अंदर नकारात्मक प्रवर्तियाँ जन्म लेने लगती हैं जैसे : अकारण डर की भावना, अकारण शर्म की भावना, ईर्ष्या, अकारण उदासी, तृष्णा, छल-कपट, घृणा, धोखा आदि की भावनाएँ।
नाभि चक्र के कार्य
हमारे “नाभि चक्र” का वही कार्य है, जो कार्य हमारे सौरमंडल में “सूर्य” का है। सूर्य हमारे सौरमंडल का केंद्र है और सूर्य का काम है हमें ऊर्जा और प्रकाश प्रदान करना और सूर्य हमारे लिए कितना महत्वपूर्ण है यह हम सब भली भांति जानते हैं।
आज अगर सूर्य मे जरा सी भी कोई दिक़्कत/परेशानी अथवा घटना हो तो ऐसा हो ही नहीं सकता की हम तुरंत प्रभावित ना हों, क्यूंकि सूर्य हमारा केंद्र है और हमें ऊर्जा और प्रकाश प्रदान कर रहा है।
भौतिक महत्व
बिलकुल यही कार्य हमारे शरीर मे हमारे "नाभि चक्र" का होता है। माँ के गर्भ मे बच्चे के विकास की शुरुआत नाभि चक्र के विकास से ही होती है, बच्चा गर्भ मे नौ महीने तक माँ की नाभि से अपनी नाभि द्वारा जुड़ा रहता है, जन्म लेने के बाद अगर हम देखें की हमारे शरीर का केंद्र क्या है..... तो वह हमारी नाभि ही है।
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नसों से कनेक्शन
गर्भ मे बच्चे के विकास की शुरुआत नाभि से ही होती है इसलिए आयुर्वेद के अनुसार हमारे शरीर की लगभग 72,864 नाड़ियों का उदगम स्थल हमारी नाभि ही है। हमारे शरीर मे जितनी भी ऊर्जा प्रवाहित हो रही है उसे नियंत्रण करने का कार्य हमारी नाभि का ही है। नाभि के द्वारा ही हमारे निचे के 2 चक्रों को तथा ऊपर के 4 चक्रों को भी मिलने वाली ऊर्जा नियंत्रित होती है इसलिए जब तक "नाभि चक्र" व्यवस्थित नहीं होगा तब तक बाकि के चक्र स्थायी तौर पर व्यवस्थित हो ही नहीं सकतें। यही कारण है की हमारे द्वारा सातों चक्रों मे "नाभि चक्र" का मुख्य रूप से सबसे पहले चयन किया गया है।
अब हमारे नाभि चक्र की एक प्रकर्ति है की यह अपने स्थान से अव्यवस्थित होता रहता है.... हमारे समाज मे इसका प्रत्यक्ष उदहारण इस बात से मिलता है की जब किसी व्यक्ति को अकारण दस्त (Loose Motion) या पेट में दर्द हो रहा हो, किसी भी प्रकार की दवाई का असर ना हो रहा हो, सारे टेस्ट और रिपोर्ट्स सही आ रही हों, तब
हमारा ध्यान इस बात पर जाता है की कही नाभि तो नही उतर गई या टल गई, ऐसे मे हमारे आस-पास नाभि के इलाज के जानकर व्यक्ति, जो नाभि को नापकर अव्यवस्थित होने की स्थित मे प्रचलित तरीकों द्वारा नाभि को व्यवस्थित करते देतें हैं और जैसे ही नाभि व्यवस्थित होती है, रोगी व्यक्ति को तुरंत आराम आना शुरू हो जाता है।
तो इस प्रकार हमें पता चलता है की हमारी नाभि का व्यस्थित रहना हमारे मानसिक और शारीरिक स्वस्थ का मुख्य आधार है।
उपरोक्त अकारण दस्त (Loose Motion) के लक्षण तब आते है जब असंतुलन से कोई भरी चीज उठने पर, कोई झटका लगने से अथवा किसी अन्य कारण से हमारी नाभि अपनी जगह से निचे के तरफ आ जाती है, परन्तु हमारी नाभि केवल निचे ही नहीं बल्कि, ऊपर, दाएँ, बाएँ, पीछे रीढ़ की हड्डी की तरफ और बाहर की तरफ अर्थात दसों दिशाओं में भिन्न-भिन्न कारणों से जाती रहती है और जागरूकता की कमी के कारण हम इससे उत्पन्न लक्षणों से अंजान रहते हैं। नाभि के अव्यवस्थित होने से सैकड़ों प्रकार के लक्षण उत्पन्न होते हैं, जिनमे कुछ मुख्य लक्षण हैं…..
असंतुलित नाभि
अकारण चिंता, तनाव और चिड़चिड़ापन
कोई भी ऐसा रोग जो डॉक्टर/वैध की समझ मे ना आ रहा हो अथवा ठीक होने के बाद दोबारा बार बार वापिस आ जाता हो
पाचन सम्बंधित कोई भी स्थाई समस्या
किसी भी प्रकार की अकारण एलर्जी अथवा बार बार बीमार पड़ना
अकारण थकावट रहना, काम मे मन ना लगना शरीर मे ऊर्जा की कमी महसूस होना
आत्मविश्वास की कमी महसूस करना
इच्छाशक्ति का आभाव आदि......
यह बड़े आश्चर्य के बात है की जागरूकता के आभाव के कारण व्यक्ति वर्षो से अव्यवस्थित नाभि के साथ जीवन जी रहे हैं। वर्षो से अव्यस्थित नाभि का अर्थ है, वर्षो से शरीर का ऊर्जा तंत्र अव्यवस्थित होना, जिसके कारण अंगों का सामान्य से अधिक या कम, काम कर पाना और इस स्थति के कारण विभिन्न प्रकार के रोग हमें शारीरिक और मानसिक रूप से जकड़ने लगते हैं।
और एक समय के बाद हम अपने को एक बड़े और भयंकर रोग से जकड़ा पाते हैं। यदि हम दुनियाँ के किसी भी शारीरिक अथवा मानसिक रोग की जड़ में जाएं तो हमें सिर्फ एक ही कारण मिलेगा और वो है "हमारे नाभि चक्र का अव्यवस्थित होना"।
नाभि अपने स्थान पर व्यवस्थित है की नही, इसको जानने के लिए हमारे ऋषि-मुनियों ने कई प्रकार के तरीके बताएं हैं जिनमे से एक है की......
A Simple Way to Check
Whether Naabhi Chakra Balanced:
कराग्रे वसते लक्ष्मिः करमध्ये सरस्वति |
करमूले तु गोविन्दः प्रभाते करदर्शनम् ||
इस तरीके का उल्लेख हमें इस श्लोक मे मिलता है जिसके अनुसार: निचे मणिबन्ध की रेखाओं को मिलाइये और ऊपर की तरफ सीधी करते चले जाइये यदि हमारी छोटी वाली उँगलियाँ (कनिष्ठिका) बराबर नहीं हैं तो समझ जाइये की हमारी नाभि अव्यवस्थित है।
तो आइये सबसे पहले जाने की स्वॅम हमारी अपनी नाभि व्यवस्थित है की नहीं:
यह बात निश्चित है की कोई भी व्यक्ति सबसे पहले स्वॅम, फिर अपने परिवार और फिर समाज मे नाभि को मपना शुरू करे तो आश्चर्यजनक रूप से आप पायेगें की 85% व्यक्तियों की नाभि अपनी जगह से अव्यवस्थित है..... और ये वह व्यक्ति हैं जिनकी नाभि ज्यादा अव्यवस्थित होने के कारण आप आसानी से नाप सकते हैं..... थोड़ी बहुत नाभि अव्यवस्थित होने की स्थिति में प्रचलित तरीकों द्वारा नपना कठिन होता है.......
नाभि के जानकार लोगों का मानना है की आज के समय में 99% व्यक्तियों की नाभि अव्यवस्थित है जिसके कारण 10 वर्ष से ऊपर प्रत्येक व्यक्ति कही ना कही शारीरिक अथवा मानसिक रूप से परेशान है
अब प्रश्न यह उठता है की नाभि को व्यवस्थित कैसे किया जाएँ?
Traditional Methods:
तो नाभि को व्यवस्थित करने के बहुत सारे तरीके प्रचलित हैं जैसे: मालिश द्वारा, झटके द्वारा, लोटे या दिये द्वारा, नसों को दबाकर, पैर मे या पैर के अंगूठे मे धागा बाँध कर तथा कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो मन्त्र शक्ति अथवा झाड़ा लगाकर भी नाभि को व्यवस्थित कर देते हैं।
परन्तु यदि आप किसी नाभि के जानकार व्यक्ति से बात करेंगे तो पाएंगे की बहुत सारे नाभि के ऐसे रोगी होते हैं जिनकी नाभि एक जगह पर रूकती नहीं हैं अर्थात प्रचलित तरीकों द्वारा नाभि को व्यवस्थित करने के कुछ ही समय बाद नाभि अपने आप पुनः अव्यवस्थित हो जाती है, जो की एक गंभीर समस्या हैं। बार बार पुनः अव्यवस्थित होने का कारण यह है कि दुनियाँ में नाभि को व्यवस्थित करने के जितने भी तरीकें उपलब्ध हैँ, वह केवल रख-रखाव (Maintenance) की क्ष्रेणी में आते हैं ना की उपचार (Treatment) की.....
आज के समय में अव्यवस्थित नाभि का कोई भी स्थाई उपचार उपलब्ध नहीं है। इसका उपचार हजारों वर्षो पहले हमारे ऋषि-मुनियों के पास हुआ करता था जब वह जड़ी-बूटियों के द्वारा इसका स्थाई उपचार (Treatment) कर लेते थे, परन्तु ऋषि-मुनियों का वह विज्ञान सुयोग्य शिष्यों को आभाव में लुप्त हो गया, परन्तु इसके बाद भी नाभि के बारे में समाज में जागरूकता के कारण हमारे घर परिवार में सभी बड़े लोग इसका रख-रखाव (Maintenance) आसानी से कर लेते थे परन्तु धीरे धीरे अब वह लोग भी समाज से लुप्त होते जा रहे हैं और जिसके कारण हम दोबारा वही बात दोहराना चाहेगें की यही मुख्य कारण हैं की आज के समय में 10 वर्ष से ऊपर प्रत्येक व्यक्ति, बच्चे से लेकर बड़े और बुजुर्ग तक कही ना कही शारीरिक अथवा मानसिक रूप से परेशान है।
नाभि चक्र गुरु
इस गम्भीर समस्या के निदान और अव्यवस्थित "नाभि चक्र" के उपचार के लिए हम धन्यवाद करते हैं "स्वामी मुक्तानंद जी" का जिन्होंने पिछले 40 वर्षो से शोध करके हमारे उसी विज्ञान को पुनर्जागरण करने मे सफलता पाई है जिसके द्वारा हमारे ऋषि-मुनि जड़ी-बूटियों द्वारा अव्यवस्थित नाभि का उपचार किया करते थे और स्वामी मुक्तानंद जी की उसी शोध का परिणाम है......
"नाभि चक्र औषधि"
विश्व की पहली और एकमात्र औषधि जो मात्र भोजन के साथ लेने से हमारे "नाभि चक्र" को व्यवस्थित अर्थात बैलेंस, एलाइन और एक्टिवेट करती है, जो कि विश्व कि सबसे प्राचीन और उन्नत चिकित्सा “चक्र चिकित्सा” पर आधारित और पूर्णतः प्राकर्तिक जड़ी-बूटियों से निर्मित एक विलक्षण औषधि है। "नाभि चक्र" औषधि में माइक्रो डाइट, न्यूट्रीमाइंड तथा त्रिफला पेेेय जो हमारे नाभि चक्र को संतुलित (Balance), एक सीध मे (Align) और सक्रिय (Activate) करती है... नाभि चक्र के संतुलित, एक सीध मे और सक्रिय होते ही हमारे शरीर मे उपस्थित उर्जा, पूरे शरीर मे संतुलन के साथ प्रवाहित होने लगती है जिससे शरीर मे एक चेतनता आ जाती है.... और यह चेतनता आते ही 24 घंटे के अंदर स्वस्थ होने की दिशा मे निम्न कार्य प्रारंभ होता है:
वह सभी रोग जो शरीर मे अभी जड़ पकड़ने की कोशिश कर रहे हैं.... शरीर उन्हें बाहर निकलना शुरू कर देता है, जिससे शुरूआती अवस्था के रोग वहीं नष्ट हो जाते हैं
अब बात उन रोगों की, जोकी शरीर मे आ चुके हैं, वह जिस रफ़्तार से बड़ रहे हैं वो बढ़ने रुक जाते हैं या उनकी बढ़ने की रफ़्तार कम हो जाती है क्यूंकी हमने नाभि चक्र औषधि द्वारा सीधा उस जड़ को ठीक करना शुरू कर दिया है जहाँ से रोग उत्पन्न हो रहे हैं
अब रोगों की जड़ को ख़त्म करने के बाद हम जो भी उपचार पद्दति अपनाते हैं वह अपनी पूरी क्षमता से कार्य करती है और हम पूर्ण रूप से स्वस्थ होने की दिशा मे बढ़ते हैं
नाभि चक्र ज़्यादा रोगी होने अथवा अधिक आयु के होने पर आप प्रत्येक 300 दिन ले सकते हैं और जैसे-जैसे नाभि चक्र औषधि लेते हैैं बैसे ही तन्त्र अपनी पूरी शक्ति के साथ कार्य करता है।
नाभि चक्र अपनी प्रकर्तिक स्थिति मे आता चला जाता है
आत्मविश्वास, आत्मसम्मान और इच्छाशक्ति आदि भावनाएं बढ़ती रहती है
शरीर की विषहरण (Detoxification) प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है, जिससे भविष्य मे भी रोगग्रस्त होने की संभावना क्षीण हो जाती है
रोग प्रतिरोधक क्षमता (Immune System) बढ़ती चली जाती है जिससे अगर कोई रोग आक्रमण करने की कोशिश भी करता है तो एक मजबूत रोग प्रतितोधक क्षमता उसे पराजित करने मे सफल होती है
तो इस प्रकार हम देखते हैं की "नाभि चक्र" औषधि एक विलक्षण औषधि मूल है जो आजीवन पूर्ण स्वस्थ रहने मे प्रकर्तिक रूप से मदद करती है।कुछ अन्य बाते जो जाननी आवश्यक है:
नाभि चक्र औषधि प्रत्यक्ष रूप से किसी भी रोग की औषधि नहीं है परन्तु क्यूंकि यह उस जड़ को ठीक करती है जहाँ से सभी रोगों की उत्पत्ति होती है इसलिए अप्रत्यक्ष रूप से यह सभी रोगों पर प्रभावशाली है।
नाभि चक्र औषधि 5 वर्ष से ऊपर के सभी व्यक्तियों को दी जा सकती है चाहे वह कितनी भी बड़ी आयु का क्यों न हो और कितनी भी जटिल रोग से ग्रस्त क्यों न हो, यहाँ तक की गर्भवती महिलाओं के लिए भी पूर्णतः सुरक्षित है।
नाभि चक्र ठीक तो जीवन ठीक
तो हम यह बात निश्चित रूप से कह सकते हैं की "नाभि चक्र ठीक तो जीवन ठीक"
क्योंकि जब तक हम अपनी नाभि को व्यवस्थित नहीं रखेगें तब तक चाहे हम जितना अच्छा भोजन कर लें, अच्छी से अच्छी औषधि ले लें और चाहे जितना मर्जी व्यायाम कर लें ... हम पूरी तरह स्वस्थ रह ही नहीं सकते