नाभि खिसकना एवं योग चिकित्सा
नाभि खिसकना या धरण जाना आयुर्वेद और प्राकृतिक उपचार पद्धति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। नाभि को मानव शरीर का केंद्र माना जाता
है। नाभि स्थान से शरीर की बहत्तर हजार नाड़ियों जुड़ी होती है। यदि नाभि अपने स्थान से खिसक जाती है तो शरीर में कई प्रकार की समस्या
पैदा हो सकती है। ये समस्या किसी भी प्रकार दवा लेने से ठीक नहीं होती। इसका इलाज नाभि को पुनः अपने स्थान पर लाने से ही होता है।
आधुनिक चिकित्सा पद्धति में इसे नहीं माना जाता है। परंतु आज भी इस पद्धति से हजारों लोग ठीक होकर लाभ प्राप्त कर रहे है।
नाभि का अपने स्थान से खिसक जाने को नाभि हटना ( Nabhi Hatna) , धरण जाना ( Dharan Jana ) , गोला खिसकना
( Gola khisakna ) पिचोटी खिसकना ( Pichoti Khisakna ) , नाभि पलटना ( Nabhi Palatna ) या नाभि चढ़ना
( Nabhi Chadhna ) आदि नामों से भी जाना जाता है।
नाभि खिसकने के कारण पेट दर्द , कब्ज , दस्त , अपच आदि होने लगते है। यदि नाभि का उपचार ना किया जाये तो शरीर में कई प्रकार की
अन्य परेशानियाँ पैदा हो सकती है। जैसे दाँत , बाल , आँखें प्रभावित हो सकते है , मानसिक समस्या पैदा हो सकती है। डिप्रेशन हो सकता है।
अतः नाभि का पुनः अपने स्थान पर आना आवश्यक होता है।
नाभि खिसकने का कारण – Reason Of Dharan
यदि पेट की मांसपेशियां कमजोर होती है तो नाभि खिसकने की समस्या ज्यादा होती है । दैनिक जीवन के कार्य करते समय शरीर का संतुलन
सही नहीं रह पाने के कारण नाभि खिसक सकती है। इसके अलावा शरीर की मांस पेशियों पर एक तरफ अधिक भार पड़ने से भी धरण चली
जाती है , गोला सरक जाता है । पेट पर बाहरी या अंदरूनी दबाव नाभि टलने का कारण हो सकता है। सामान्य कारण इस प्रकार है :
असावधानी से दाएं या बाएं झुकना।
संतुलित हुए बिना अचानक एक हाथ से वजन उठाना।
चलते हुए अचानक ऊंची नीची जगह पर पैर पड़ना।
खेलते समय गलत तरीके से उछलना।
तेजी से सीढ़ी चढ़ना या उतरना।
ऊंचाई से छलांग लगाना।
पेट में अधिक गैस बनना।
पेट में किसी प्रकार की चोट लगना।
स्कूटर या मोटर साइकिल चलाते समय झटका लगना।
गर्भावस्था में पेट पर आतंरिक दबाव ।
तनाव।
बचपन से किसी कारण से नाभि खिसकी हुई हो।
नाभि खिसकने की जाँच
नाभि टलने या खिसकने का पता लगाने के बहुत आसान तरीके होते है। इनको जानकर आप भी नाभि खिसकने या धरण जाने का पता कर
सकते है। थोड़े से अनुभव के बाद तुरंत पता चल जाता है। अधिकतर पुरुष की नाभि बायीं तरफ तथा स्त्रियों की नाभि दायीं तरफ खिसकती
है।
नाभी के खिसकने का पता करने की विधि इस प्रकार है :-
( 1 ) सीधे खड़े हो जाएँ। दोनों पैर पास में सीधे रखें। अपने दोनों हाथ सीधे करें। हथेलियां खुली रखकर इस तरह समानांतर रखें की दोनों छोटी अंगुलीयां (Little Finger ) पास में रहें। हथेली की रेखा मिलाते हुए छोटी अंगुली (Little Finger ) की लंबाई चेक करें। यदि छोटी
अंगुलियां की लंबाई में फर्क नजर आता है यानि कनिष्ठा अंगुलियां छोटी बड़ी नजर आती है तो नाभि खिसकी हुई है।
( 2 ) पुरुष की नाभि चेक करने के लिए एक धागे से उसकी नाभि और एक छाती के केन्द्रक के बीच की दूरी नापें। अब नाभि से दूसरी छाती के
केन्द्रक की दूरी नापें। यदि नाप अलग अलग आती है तो नाभि खिसकी हुई है।
( 3 ) सुबह खाली पेट चटाई पर पीठ के बल लेट जाएँ। हाथ और पैर सीधे रखें। हथेलियाँ जमीन की तरफ रखें। अब अंगूठे से नाभि पर हल्का दबाब
डालकर स्पंदन चेक करें। यदि स्पंदन नाभि पर महसूस होता है तो नाभि सही है। यदि स्पंदन नाभि के स्थान पर ना होकर नाभि से ऊपर ,
नीचे , दाएं या बाएं महसूस होता है तो नाभि अपने स्थान से खिसकी हुई है। जिस प्रकार कलाई पर अंगूठे के नीचे नाड़ी देखने पर स्पंदन
महसूस होता है। इसी प्रकार का स्पंदन नाभि पर महसूस होता है।
( 4 )सीधे पीठ के बल लेट जाएँ। दोनों पैर पास में लाएं यदि पैर के अंगूठे ऊपर नीचे दिखाई दें तो नाभि अपने स्थान से हटी हुई है
नाभि खिसकने से नुकसान
यदि नाभि नीचे की ओर खिसक गई है तो दस्त , अतिसार , पेचिश आदि की समस्या हो जाती है।
नाभि के ऊपर की तरफ खिसकने पर कब्ज रहने लगती है। गैस अधिक बनती है। इसके कारण लंबी अवधि में फेफड़ों की समस्या , अस्थमा , डायबिटीज आदि बीमारियां हो सकती है।
बाईं और खिसकने पर सर्दी , जुकाम , खाँसी , कफ आदि की समस्या बार बार हो सकती है।
दायीं तरफ खिसकने पर लीवर पर असर पड़ सकता है। एसिडिटी हो सकती है , अपच या अफारा हो सकते है।
यदि नाभि अधिक गहराई में महसूस हो तो व्यक्ति कितना भी खाये शरीर कृशकाय ही बना रहता है।
नाभि को ठीक करने के उपाय
नाभि खिसके या गोला सरके हुए अधिक समय नहीं हुआ हो तो नीचे दिए गए तरीके अपनाने से जल्द वापस अपनी जगह आ जाती है। यदि
समय अधिक हो गया हो तो थोड़ा अधिक प्रयास करना पड़ता है। यदि नीचे दिए गए तरीको से लाभ ना हो तो किसी अनुभवी से नाभि सही
करवानी चाहिए। कुछ लोग खुद का पेट तेल लगा कर मसल कर नाभि सही करने का प्रयास करते है ,जो उचित तरीका नहीं है। पेट को
मसलना नहीं चाहिए।
यहाँ जो नाभि ठीक करने के तरीका दिए गए है उनमे से अपनी शारीरिक अवस्था के अनुसार
नाभि को वापस अपनी जगह ला सकते है।
(1 ) जिस हाथ की छोटी अंगुली की लंबाई कम हो उस हाथ सीधा करें। हथेली ऊपर की तरफ हो। अब इस हाथ को दुसरे हाथ से कोहनी के जोड़
के पास से पकड़ें। अब पहले वाले हाथ की मुट्ठी कस कर बंद करें। इस मुट्ठी से झटके से अपने इसी तरफ वाले कंधे पर मारने की कोशिश
करें। कोहनी थोड़ी ऊंची रखें। ऐसा दस बार करें।
अब अंगुलियों की लंबाई फिर से चेक करें। लंबाई का फर्क मिट गया होगा। यानि नाभि अपने स्थान पर आ गई है। यही ऐसा नहीं हुआ तो एक
बार फिर से यही क्रिया दोहराएं।
( 2 ) सुबह खाली पेट सीधे पीठ के बल चटाई या योगा मेट पर लेट जाएँ। दोनों पैर पास में हो और सीधे हो। हाथ सीधे हो और कलाई जमीन की
तरफ हो। अब धीरे धीरे दोनों पैर एक साथ ऊपर उठायें। इन्हें लगभग 45 ° तक ऊँचे करें। फिर धीरे धीरे नीचे ले आएं। इस तरह तीन बार
करें। नाभि सही स्थान पर आ जाएगी। यह उत्तानपादासन कहलाता है।
( 3 ) सुबह खाली पेट योगा मेट पर पीठ के बल सीधे लेट जाएँ। अब एक पैर को मोड़ें और दोनों हाथों से पैर को पकड़ लें। दूसरा पैर सीधा ही रखें।
जिस प्रकार शिशु अपने पैर को पकड़ कर पैर का अंगूठा मुँह में डाल लेते है उसी प्रकार आप पैर को पकड़ कर अंगूठे को धीरे धीरे अपनी
नाक की तरफ बढ़ाते हुए नाक से अड़ाने की कोशिश करें। सर को थोड़ा ऊपर उठा लें। अब धीरे धीरे पैर सीधा कर लें।यह एक योगासन है
जिसे पादांगुष्ठनासास्पर्शासन कहते है
इसी प्रकार दुसरे पैर से यही क्रिया करें। इस प्रकार दोनों पैरों से तीन तीन बार करें। फिर एक बार दोनों पैर एक साथ मोड़ कर यह क्रिया करें।
नाभि अपनी सही जगह आ जाएगी।
यदि आपकी मांस पेशियाँ कमजोर है तो बार बार नाभि खिसक सकती है , गोला खिसक सकता है । अतः थोड़ा व्यायाम आदि करके उन्हें मजबूत करें।
पैर के अंगूठे में काला धागा बांधने से नाभि बार बार नहीं खिसकती है।