पंचकोष सिद्धांत
पंचकोष सिद्धांत :- उपनिषदों में पंच कोशों द्वारा आत्मा के पाँच मुख्य आवरणों का उल्लेख किया है, जिनके द्वारा क्रमशः स्थूल आवरण में आत्म भावना का निवेध करते हुये ब्रह्मस्वरूप के साक्षात्कार की बात कही गयी है। ये पंच कोश निम्न प्रकार है- (1) आनन्दमय कोश, (2) विज्ञानमय कोश, (3) मनोमय कोश, (4) प्राणमय कोश, (5) अन्नमय कोश। (1) आनन्दमय कोश :- शुद्ध ब्रह्म तत्व पर प्रथम आवरण सांख्य के महत्तत्त्व एवं योग के चित्त का है। आनन्दमय कोश के कारण प्रिय प्रमाद रहित आत्मा, प्रिय प्रमादादि धर्मां से युक्त हो जाती है। यह आनन्द कोश रूपी आवरण ‘कारण शरीर’ कहा जाता है। (2) विज्ञानामय कोश :- आनन्दमय कोश के ऊपर दूसरा आवरण अहंकार एवं बुद्धि का है। जो विज्ञानमय कोश कहलाता है। यह कोश आत्मा का आच्छादन करके उसे कर्ता, विज्ञातादि अभिमान युक्त करता है। अभिमान ही इस कोश का स्वरूप है। (3) मनोमय कोश :- उपर्युक्त दोनों कोशों के ऊपर तीसरा आवरण मनोमय कोश होता है। यह कोश मन एवं इन्द्रियों के गुण एवं क्रिया का आरोप आत्मा में कर देता है। जिसके फलस्वरूप आत्मा संशय, मोहादि गुणों से युक्त हो जाती है। मनोमय कोश में इच्छा शक्ति भी निहित रहती है। (4) प्राणमय कोश :- आत्मा का चौथा आवरण ‘प्राणमय कोश’ है। इसमें पंच कर्मेन्द्रियों एवं प्राणों के काय (वक्तृत्त्व, दातृत्त्व, गति, क्षुधा, पिपासा) आदि विकारों का अभिमान आत्मा में प्रतीत होता है। प्राणमय कोश में क्रिया शक्ति विद्यमान हैं। (5) अन्नमय कोश :- आत्मा के ऊपर पाँचवा स्थूल आवरण स्थूल शरीर का है, यह अन्न से बने रज एवं वीर्य से उत्पन्न होता है एवं अन्न से ही बढ़ता है। इस कोश के कारण शरीर के धर्म, जन्म, मृत्यु, जरा का आरोप आत्मा में होता है। स्थूल शरीर सहित आत्मा को विश्व कहा जाता है। उपर्युक्त पंच कोशों में प्रत्येक कोश में आलम्बन का अभाव करते-करते अन्त में अभाववृत्ति का भी अभाव करके निरालम्बन समाधि की सिद्धि होती है।