योग द्वारा थायराइड का उपचार

 योग द्वारा थायराइड का उपचार

 योग द्वारा थायराइड का उपचार

देशभर में थायराइड जैसे गंभीर बीमारी से कई लोग जूझ रहे हैं जो इन योग  के जरिए अपनी वीमारी को  दूर कर सकते हैं।योग करने के कई फायदे होते हैं इस बात से आप परिचित होंगे। योग कई तरह के रोगों को भी दूर करता है और आपको स्वस्थ रखता है लेकिन अगर आप किसी एक खास रोग से जूझ रहे हैं तो उसके लिए आपको कौन से योगा आसन करने चाहिए इसकी जानकारी आपको शायद ही हो। देशभर में थायराइड जैसे गंभीर बीमारी से कई लोग जूझ रहे हैं। कई तरह की दवाइयां खाकर भी अगर आपके थायराइड पर कोई असर नहीं पड़ा है तो आप इन योगा आसन के जरिए अपनी यह परेशानी दूर कर सकते हैं

सर्वांगासन-

 यह आसन थायराइड को दूर करने के लिए कुछ बेहतरीन आसनों में से एक है। इसे Shoulder Stand Pose भी कहा जाता हैं। सर्वांगासन करने के लिए अपनी पीठ के बल लेट जाएं। इसके बाद एक साथ, अपने पैरों, कूल्हे और फिर कमर को उठाएं। सारा भार आपके कन्धों पर आना चाहिए और ऐसा होते ही अपनी पीठ को अपने हाथों से सहारा दें। हाथों को पीठ के साथ रखें, कन्धों को सहारा देते रहें। कोहनियों को ज़मीन पर दबाते हुए और हाथों को कमर पर रखते हुए, अपनी कमर और पैरों को सीधा रखें। अपने पैरों को सीधा व मज़बूत रखें। लंबी गहरी साँसे लें और 30 से 60 सेकण्ड तक आसन में ही रहें। आसन पूरा करने के लिए घुटनों को धीरे से माथे के पास लाएं। हाथों को ज़मीन पर रखें और बिना सिर उठाए धीरे-धीरे कमर को नीचे लें करें।

विपरीतकर्णी मुद्रा 

इस आसन को करने के लिए सबसे पहले पीठ के बल लेटकर दोनों पैरों को मिलाकर एड़ी-पंजे आपस में मिला लें। फिर हाथ बगल में और हथेलियां जमीन के ऊपर और गर्दन सीधी रखें। इसके बाद धीरे-धीरे दोनों पैरों को 30 डिग्री के एंगल पर लाएं। 30 डिग्री पर पहुंचने के बाद कुछ सेकंड रुकें, फिर पैरों को 45 डिग्री कोण पर ले जाएं, और फिर कुछ सेकंड रुकें। इसके बाद 90 डिग्री के कोण पर पैरों को उठाएं। 90 डिग्री पर पहुंचने के बाद दोनों हाथों का सहारा लेकर ‍नितंब को धीरे-धीरे उठाएं और पैरों को पीछे ले जाएं। दोनों हाथ नितंब पर रखें और पैरों को सीधा करें।

हलासन- 

इसे करने के लिए आप जमीन पर पीठ के बल लेट जाएं। दोनों पैर एक दूसरे से मिले होने चाहिए और हथेलियां जमीन पर और कमर के पास हों। इसके बाद धीरे-धीरे दोनों पैरों को उपर की ओर उठाएं। ध्यान रहें ऐसा करते समय पेट को सिकोड़ें और सांस को अंदर लेते रहें। इसके बाद दोनों पैरों को उठाते हुए सिर के पीछे लगाने कि कोशिश करें। ध्यान रखें अगर पैर सिर के पीछे नहीं पहुंच रहे हैं तो ज्यादा जोर न लगाएं ऐसा करने से आपकी गर्दन में परेशानी हो सकती है। पीठ और कमर को पैरों के साथ पीछे की तरफ मोड़ने के लिए हाथों का सहारा लें। आसन को थोड़ी देर होल्ड करने की कोशिश करें और घुटनें मुड़ें नहीं इस बात का ध्यान रखें।

 

मत्स्यासन- 

इस आसन करने के लिए कमर के बल लेट जाएं और अपने हाथों और पैरों को शरीर के साथ जोड़ लें। हाथों को कूल्हों के नीचे रखें, हथेलियां ज़मीन पर रखें। इसके बाद कोहनियों को साथ जोड़ लें। सांस अंदर लेते हुए, छाती और सर को उठाएं। इसके बाद अपनी छाती को उठाएं, सर को पीछे कि ओर लें और सर की चोटी को ज़मीन पर लगाएं। सिर को ज़मीन पर आराम से छूते हुए, अपनी कोहनियों को ज़ोर से ज़मीन पर दबाएं, सारा भार कोहनियों पर डालें, सिर पर नहीं। इसके बाद अपनी छाती को ऊंचा उठाएं। जंघा और पैरों को ज़मीन पर दबाएं। जितना संभव हो, आसन में रहें, लंबी गहरी सांस लें। छाती को नीचे करते हुए वापस आएं। दोनों हाथों को वापस शरीर के दाएं-बाएं लगा लें और फिर विश्राम करें।

भ्रामरी प्राणायाम

भ्रमर का अर्थ ही मधुमक्खी (Bee) होता है। चूँकि इस प्राणायाम को करते वक्त व्यक्ति बिल्कुल मधुमक्खी की तरह ही गुंजन करता है, इसलिए इसे भ्रामरी प्राणायाम कहते है| यह प्राणायाम अंग्रेज़ी में Bee-Breathing Technique के नाम से भी जाना जाता है।

  1. सर्वप्रथम किसी स्वच्छ जगह का चयन करके, आसन बिछा कर पद्मासन अथवा सुखासन में बैठ जायें। मन को शांत कर के अपनी सांस सामान्य कर लें।
  2. अब अपने दोनों हाथों को बगल में अपने दोनों कंधों के समांतर फैला लें, और फिर अपनी कोहनियों को मोड़ कर हाथों को अपने कानों के पास ले आयें। फिर अपनें दोनों नेत्रों (आँखों) को बंद कर लें|
  3. उसके बाद अपने हाथों के दोनों अँगूठों से अपने दोनों कान बंद कर दें। (Note- भ्रामरी प्राणायाम करते वक्त कमर, गरदन और मस्तक स्थिर और सीधे रखने चाहिए)।
  4. अब अपने दोनों हाथों की पहली उंगली को आँखों की भौहों के थोड़ा सा ऊपर लगा दें। और बाकी की तीन तीन उँगलियाँ अपनी आंखों पर लगा दीजिये।
  5. अपने दोनों हाथों को ना तो अधिक दबाएं और ना ही एक दम फ्री छोड़ दें। अपने नाक के आस-पास दोनों तरफ से लगी हुई तीन-तीन उँगलियों से नाक पर हल्का सा दबाव बनायें।
  6. दोनों हाथों को सही तरीके से लगा लेने के बाद अपने चित्त (मन) को अपनी दोनों आंखों के बीछ केन्द्रित करें। (यानि की अपना ध्यान अज्न चक्र पर केन्द्रित करें)।
  7. और अब अपना मुह बिल्कुल बंद रखें और अपने नाक के माध्यम से सामान्य गति से सांस अंदर लें| फिर नाक के माध्यम से ही मधु-मक्खी जैसी आवाज़ (humming sound) करते हुए सांस बाहर निकालें। (Important- यह अभ्यास मुह को पूरी तरह से बंद कर के ही करना है)।
  8. सांस बाहर निकालते हुए अगर “ॐ” का उच्चारण किया जाए तो इस प्राणायाम का लाभ अधिक बढ़ जाता है।
  9. सांस अंदर लेने का समय करीब 3-5 सेकंड तक का होना चाहिए और बाहर छोड़ने का समय 15-20 सेकंड तक का होना चाहिए।
  10. भ्रामरी प्राणायाम कुर्सी(chair) पर बैठ कर भी किया जा सकता है। परंतु यह अभ्यास सुबह के समय में सुखासन या पद्मासन में बैठ कर करने से अधिक लाभ होता है।

 

 उज्जायी प्राणायाम की विधी : 

उज्जायी प्राणायाम करने की विधी / How To Do ujjayi Pranayama –

इस प्राणायाम / Pranayam को करते समय सबसे पहले आप आराम से बैठ जाइये. इस बात का ध्यान रखे की आप साँस अंदर और बाहर नाक से ही ले और अपना मुह बंद रखे. आप लंबी-लंबी साँसे ले और धीरे-धीरे छोड़े.

आप अपने गले की मासपेशियों को सिकुड़ने दे इससे आपके गले की नलि छोटी और पतली होंगी जिससे आप को लंबी साँसे लेने में आसानी होगी. आप उज्जयी प्राणायाम को शुरुआत में 3 मिनट तक ही करे फिर धीरे-धीरे 10 मिनट तक लेकर जाये. आपका साँस लेने और छोड़ने का समय एक ही (बराबर) होना चाहिये.

इस प्राणायाम को करते समय अगर आपका दिमाग भटके तो आप सामान्य रूप से लगातार साँस लेते रहे.

उज्जयी प्राणायाम / Ujjayi Pranayama को करते समय साँसों पर ज्यादा ध्यान देना चाहिये इससे आप में एकाग्रता बढेंगी.

उज्जयी प्राणायाम करने से आपके शरीर में ब्लड सर्कुलेशन (Blood Circulation) बढ़ता है. इस प्राणायाम को करने से फेफड़े की ऑक्सीजन (Oxygen) ग्रहण करने की क्षमता भी बढती है.

भस्त्रिका प्राणायाम में साँसों को बाहर छोड़ने पर ज्यादा ध्यान देना चाहिये. इस प्राणायाम को करते समय एक बार में 5 बार साँस छोड़े. इस बात को ध्यान रखे की इसमें साँस को जोर-जोर से ना छोड़े, इससे आप के फेफड़े ख़राब हो सकते है. भस्त्रिका प्राणायाम करने से त्रि दोष संतुलित रहते है और मन शांत रहता है.

नाड़ी शुधि प्राणायाम को अंग्रेजी में अल्टरनेट नोस्ट्रिल (Alternate Nostril) कहते है, इसमें दोनों नासिकाओ से एक के बाद एक साँस लेते है. अगर आप एक ही नासिका से ज्यादा साँस लेने लगोगे तो आपकी सेहत ख़राब हो सकती है. अगर दाँई नासिका से ज्यादा साँस लेते है तो आपको मानसिक परेशानियाँ हो सकती है, और अगर आप बाँई नासिका से ज्यादा साँस लेने लगोगे तो आप थकान महसूस करेंगे और दिमाग की कार्य क्षमता भी कम हो सकती है. इस प्राणायाम को करने से दिमाग शांत और संतुलित रहता है. अगर आप को बहुत से प्राणायामो के लाभ लेने हो तो आप योगिक डाइट (Diet) ले, जिससे आपको श्वसन प्रक्रिया में लाभ होंगा और आपका शरीर स्वस्थ रहेगा.

उज्जयी प्राणायाम / Ujjayi Pranayama को विक्टोरियस ब्रेथ (Breath)और ओशियन ब्रेथ (Breath) भी कहा जाता है. बच्चो के योग शिबीर में इसे डार्थ वडेर (Darth Vader) कहा जाता है. इस प्राणायाम को करने से फूं-फूं की आवाज निकलती है. जो की एक महत्वपूर्ण श्वसन प्रक्रिया मानी जाती है. इस प्राणायाम में हवा गले की घर्षण के कारण आवाज निकलती है. यह आवाज लरैंक्स (Larynx) के कारण निकलती है. इसी वजह से इसे उज्जयी प्राणायाम कहते है.

उज्जयी प्राणायाम के लाभ / Benefits Of ujjayi Pranayam –

उज्जयी प्राणायाम / Ujjayi Pranayama से शरीर में गर्मी बढती है, और इस प्राणायाम से निकलने वाली आवाज से दिमाग शांत और एकाग्रचित रहता है. यह प्राणायाम हाई बी.पी. और दिल से संबंधित बीमारियो के लिये भी लाभदायक है. उज्जयी प्राणायाम से शरीर का दर्द, इन्सोमिया (Insomia) और माइग्रेन (Migraine) जैसी बिमारियाँ ठीक होती है.

उज्जयी प्राणायाम से शरीर साफ रहता और उर्जा बनी रहती है. इस प्राणायाम से दिमाग की गर्मी कम होती है और फेफड़ो की बिमारियाँ जैसे टी.बी. और दमा को भी ठीक करता है.

इस प्राणायाम से पाचन क्रिया अच्छी बनी रहती है और यह श्वसन प्रणाली को भी सेहतमंद बनाये रखता है.

उज्जयी प्राणायाम दमा के लिए बहोत लाभदायक है क्योंकि इससे फेफड़ो और ब्रोंचिलेस (Bronchiles) की क्षमता बढती है.

उज्जयी प्राणायाम करते समय कुछ बाते अवश्य ध्यान में रखे / Precautions –

1. इस प्राणायाम में साँसे गले की नली को छुकर जानि चाहिये.
2. इस प्राणायाम का कुछ दिनों तक अभ्यास करने के बाद एक बार गहरी सांस ले कर उसे दो बार में छोड़े.