योग के व्यवहारिक ज्ञान के साथ योग का दार्शनिक ज्ञान भी जरूरी है

योग के कई शाखाएं हैं जो अपनी-अपनी रुचि के अनुसार लोगों ने बनाए हैं। इसमें कर्म योग, ज्ञान योग, भक्ति योग और राज योग प्रमुख हैं। शास्त्रों में मंत्र योग, तंत्र योग, यंत्र योग और कुंडलिनी योग का भी उल्लेख मिलता है। आयंगर योग, शिवानंद योग, सहज योग, विन्यास योग कांति योग व अष्टांग योग भी विश्व में प्रसिद्ध हैं। ये सभी योग पद्धतियां भारतीय योग पद्धतियां हैं। भारत सरकार अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के माध्यम से भारतीय योग को प्रचारित कर रही है। इसमें सभी योग का समावेश किया गया है। इसमें चार अंगों को सभी में सम्मिलित किया गया है। किंतु योग केेे व्यवहारिक ज्ञान साथ साथ हर भारतीय को योग का दार्शनिक पक्ष भी जानना जरूरी है। स्वामी विवेकानंद ने शिकागो में दिए अपने भाषण में योग के चार स्तंभ बताए थे। इसमें पहला है कर्म योग। श्रीमद् भगवत गीता में भी कहा गया है कि व्यक्ति कर्म से महान होता है जन्म से नहीं। आज जो भी काम कर रहे हैं, उसमें अपना शत प्रतिशत दें। जो भी हम कर्म कर रहे हैं उसके पीछे का ज्ञान हमें होना चाहिए। यही योग का दूसरा रूप है ज्ञान योग। हमें हर कर्म के मूल तत्व को जानना चाहिए। तीसरा योग बताया है भक्ति योग। कोई भी कर्म जब ज्ञान के साथ करते हैं तो वह भक्ति योग में बदल जाता है। इसमें भाव प्रधान होता है। इसमें जो श्रद्धा निहित होती है वह हमें आंतरिक और बाहरी तौर पर बेहतर बनाती है। इन तीनों के मिलने से हमारे अंदर समर्पण भाव होता है। चौथा योग राज योग है, जिसमें ध्यान के माध्यम से ईश्वर को पाने या समझने की कोशिश करते हैं। इसमें यम से लेकर समाधि तक आठ नियम बताए गए हैं। योग की हर विधा में इनका समावेश होता है।