बौद्ध-दर्शन में योग 

बौद्ध-दर्शन  में योग 

  बौद्ध-दर्शन और योग 
 उपनिषदों ने बैदिक कर्मकाण्ड में आयी जटिलता एवं विकृतियाँ की निन्
 और आध्यात्मिक अनुभव को ही परम् पुरूषार्थ घोषित कर साधारण जन-मा
नयी धार्मिक क्रान्ति पैदा की उसी क्रान्ति को कालान्तर में महावीर और गा
 ने विस्तृत रूप देकर नयी धार्मिक चेतना का विकास किया। डा0 राधा कृष्ण
सार-‘‘बुद्ध ने उपनिषदों के दार्शनिक सिद्धान्तों को जो इस समय कुछ थोड
 हुए लोगों तक ही सीमित थे, जनसाधारण में प्र ्रचारित करने में सहायता दी 
धर्म का उद्देश्य यह था कि उपनिषदों के आदर्शवाद को उसके उत्कृष्ट रूप

पंचकोष सिद्धांत

पंचकोष

पंचकोष सिद्धांत :- उपनिषदों में पंच कोशों द्वारा आत्मा के पाँच मुख्य आवरणों का उल्लेख किया है, जिनके द्वारा क्रमशः स्थूल आवरण में आत्म भावना का निवेध करते हुये ब्रह्मस्वरूप के साक्षात्कार की बात कही गयी है। ये पंच कोश निम्न प्रकार है- (1) आनन्दमय कोश, (2) विज्ञानमय कोश, (3) मनोमय कोश, (4) प्राणमय कोश, (5) अन्नमय कोश। (1) आनन्दमय कोश :- शुद्ध ब्रह्म तत्व पर प्रथम आवरण सांख्य के महत्तत्त्व एवं योग के चित्त का है। आनन्दमय कोश के कारण प्रिय प्रमाद रहित आत्मा, प्रिय प्रमादादि धर्मां से युक्त हो जाती है। यह आनन्द कोश रूपी आवरण ‘कारण शरीर’ कहा जाता है। (2) विज्ञानामय कोश :- आनन्दमय कोश के ऊपर दूसर

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