सिद्ध चिकित्सा

सिद्ध चिकित्सा काफी हद तक आयुर्वेद के समान है। इस पद्धति में रसायन का आयुर्विज्ञान तथा आल्‍केमी (रसायन विश्‍व) के सहायक विज्ञान के रूप में काफी विकास हुआ है। इसे औषध-निर्माण तथा मूल धातुओं के सोने में अंतरण में सहायक पाया गया। इसमें पौधों और खनिजों की काफी अधिक जानकारी थी और वे विज्ञान की लगभग सभी शाखाओं की जानकारी रखते थे। सिद्ध चिकित्सा प्रणाली के सिद्धांत और शिक्षा मौलिक और व्‍यावहारिक दोनों हैं। यह आयुर्वेद के समान ही है इसकी विशेषता आंतरिक रसायन है। इस प्रणाली के अनुसार मानव शरीर ब्रह्माण्‍ड की प्रतिकृति है (यथा पिण्डे तथा ब्रह्माण्डे) और इसी प्रकार से भोजन और औषधि भी, चाहे उनका उद्भव

होम्‍योपैथी चिकित्‍सा

होम्‍योपैथी चिकित्‍सा विज्ञान के जन्‍मदाता डॉ. क्रिश्चियन फ्राइडरिक सैम्यूल हानेमान है। यह चिकित्सा के 'समरूपता के सिंद्धात' पर आधारित है जिसके अनुसार औषधियाँ उन रोगों से मिलते जुलते रोग दूर कर सकती हैं, जिन्हें वे उत्पन्न कर सकती हैं। औषधि की रोगहर शक्ति जिससे उत्पन्न हो सकने वाले लक्षणों पर निर्भर है। जिन्हें रोग के लक्षणों के समान किंतु उनसे प्रबल होना चाहिए। अत: रोग अत्यंत निश्चयपूर्वक, जड़ से, अविलंब और सदा के लिए नष्ट और समाप्त उसी औषधि से हो सकता है जो मानव शरीर में, रोग के लक्षणों से प्रबल और लक्षणों से अत्यंत मिलते जुलते सभी लक्षण उत्पन्न कर सके।

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