yoga at goa beach by yog bharati
Submitted by yogbharati on Fri, 09/28/2018 - 12:33yoga at goa beach by yog bharati योग भारती द्वारा गोवा में बीच पर योग
योग-भारती का उद्देश्य प्राचीन भारतीय योग व नेचुरोपैथी को आधुनिक वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य में अध्ययन-शिक्षण, एवम् गहन शोध हेतु विश्वस्तरीय शिक्षण स्थापित करना है तथा योग को विज्ञान, चिकित्सा- विज्ञान, कला, एवम् खेलों के रूप में विकसित करना है साथ ही संस्था का उद्देश्य योग-साधना, ध्यान, संयम, सदाचार, शाकाहार, संस्कृति एवम् संस्कारों को वढाबा देना है जिससे रोग मुक्त, स्वस्थ एवम् समृद्ध समाज का निर्माण हो सके|
योग जीवन जीने की कला है , एक जीवन पद्धति हैI योग के अभ्यास से सामाजिक तथा व्यक्तिगत आचरण में सुधार आता है। योग के अभ्यास से मनोदैहिक विकारों/व्याधियों की रोकथाम, शरीर में प्रतिरोधक क्षमता की बढोतरी होतो है ।योगिक अभ्यास से बुद्धि तथा स्मरण शक्ति बढती है तथा ध्यान का अभ्यास, मानसिक संवेगों मे स्थिरता लाता है तथा शरीर के मर्मस्थलों के कार्यो को असामान्य करने से रोकता है । अध्ययन से देखा गया है कि ध्यान न केवल इन्द्रियों को संयमित करता है, बल्कि तंत्रिका तंत्र को भी नियंमित करता है।
प्राकृतिक चिकित्सा केवल उपचार की पद्धति ही नहीं है,अपितु यह एक जीवन पद्धति भी है । इस पद्धति में औषधियो का प्रयोग नहीं किया जाता है इसीलिए इसे औषधि विहीन उपचार पद्धति कहा जाता है। यह मुख्य रूप से प्रकृति के सामान्य नियमों के पालन पर आधारित है।प्राकृतिक चिकित्सा के समर्थक खान-पान एवं रहन सहन की आदतों पर विशेष बल देते है। जहॉ तक मौलिक सिद्धांतो का प्रश्न है तो इस पद्धति का आयुर्वेद से अति निकटतम सम्बन्ध है।
आयुर्वेद आयुः तथा वेद इन दो शब्दों के मिलने से बना है I आयुर्वेद शब्द का अर्थ है जीवन - विज्ञान। आयुर्वेद का उल्लेख वेदों में विस्तृत रूप से वर्णित है। आयुर्वेद का वर्णन विभिन्न वैदिक मंत्रों में भी मिलता है , जिनमें संसार तथा जीवन, रोगों तथा औषधियों का वर्णन किया गया है। आज विश्व का ध्यान आयुर्वेदीय चिकित्सा प्रणाली की ओर आकर्षित हो रहा है, जिसके तहत उन्होनें भारत की अनेक जडीबूटियों का उपयोग अपनी चिकित्सा में करना शुरू कर दिया है।
अर्थात् सभी वृत्तियों के निरोध का कारण (पर वैराग्य के अभ्यास पूर्वक, निरोध) संस्कार मात्र शेष सम्प्रज्ञात समाधि से भिन्न असम्प्रज्ञात समाधि है।
साधक का जब पर-वैराग्य की प्राप्ति हो जाती है, उस समय स्वभाव से ही चित्त संसार के पदार्थों की ओर नहीं जाता। वह उनसे अपने-आप उपरत हो जाता है उस उपरत-अवस्था की प्रतीति का नाम ही या विराम प्रत्यय है। इस उपरति की प्रतीति का अभ्यास-क्रम भी जब बन्द हो जाता है, उस समय चित्त की वृत्तियों का सर्वधा अभाव हो जाता है। केवल मात्र अन्तिम उपरत-अवस्था के संस्कारों से युक्त चित्त रहता है, फिर निरोध संस्कारों में क्रम की समाप्ति होने से वह चित्त भी अपने कारण में लीन हो जाता है। अतः प्रकृति के संयोग का अभाव हो जाने पर द्रष्टा की अपने स्वयं में स्थिति हो जाती है। इसी असम्प्रज्ञात समाधि या निर्बीज समाधि कहते हैं। इसी अवस्था को कैवल्य-अवस्था के नाम से भी जाना जाता है।