योग की वैज्ञानिक मान्यता के लिए एम्स में हो रहा शोध

योग की वैज्ञानिक मान्यता के लिए एम्स में हो  रहा शोध

मॉडर्न मेडिसिन के साथ योग को वैज्ञानिक मान्यता दिलाने के लिए एम्स के कई विभाग रिसर्च में जुटे हुए हैं। कार्डियक, रेस्पिरेटरी, न्यूरो, डायबिटीज के साथ ज्यादा ध्यान लाइफ स्टाइल डिसीज़ और उसपर पड़ने वाले योग के प्रभाव को लेकर है।

एम्स के डायरेक्टर डॉ रणदीप गुलेरिया का कहना है कि अध्ययन और शोध के जरिये मॉडर्न मेडिसिन की दुनिया मे यह साबित करना अभी बाकी है कि बीमारियों के इलाज में दवाओ के साथ साथ योग बड़ी भूमिका निभाता है।

पल्मोनरी मेडिसिन के क्षेत्र में लंबे समय से चिकित्सा और शोध से जुड़े डॉ गुलेरिया ने बताया कि मेडिसिन के साथ-साथ योग अपनाने से मरीज की सेहत में तेजी से सुधार के सैकड़ो उदाहरण है लेकिन अंतररास्ट्रीय मॉडर्न मेडिसिन में इसकी स्वीकरोक्ति तब तक संभव नहीं जब तक समूचे मैकेनिज्म यानी योग से शरीर के भीतर होने वाले अंदुरुनी बदलाव से पर्दा नही उठाया जाता।

इसके लिए एम्स में लाइफ स्टाइल डिजीज से जुड़े अधिकांश विभाग एविडेंस बेस्ड रिसर्च में जुटे हुए हैं। साथ ही किस बीमारी में किस तरह के योग से फायदा होगा और उसका मानक क्या होगा इस प्रोटोकॉल को तय करने के लिए भी एम्स काम कर रहा है।

एम्स के डायरेक्टर के मुताबिक अगले एक साल में एम्स दुनिया के सामने चिकित्सा के क्षेत्र में योग का वैज्ञानिक आधार और उसके प्रोटोकॉल को रखेगा।

योग को लेकर एम्स में होने वाले रिसर्च का इतिहास वैसे बेहद पुराना है। योगियों के ज्ञानेन्द्रियो पर विजय पाने को लेकर पहला शोध 1957 में शुरू हुआ था जो 61-62 में पब्लिश भी हुआ जिसमें अतिशयोक्ति को दरकिनार करते हुए वैज्ञानिकों ने ये बताया कि योग के जरिये योगी अपने धड़कनों को रोक तो नही सकते लेकिन योग्याभ्यास से उसपर एक हदतक काबू जरूर पा सकते है।

इतना ही नही एम्स में 1990 के एक शोध में यह भी पाया गया की योग के जरिये मस्तिष्क को रिलैक्स और नॉन रिलैक्स दोनों ही किया जा सकता है।

एम्स के डिपार्टमेंट ऑफ फिजियोलॉजी के डायरेक्टर डॉ केके दीपक का बताते है कि योगिक क्रिया से रक्त में हानिकारक पदार्थों की बढ़ी मात्रा पर नियंत्रण होता है जिससे रक्त में शुद्धता आती है और उसका सकारात्मक प्रभाव शरीर के सभी वाइटल ऑर्गन्स के काम काज पर पड़ता है। इंफ्लामेशन पर कंट्रोल से बीमारियों पर नियंत्रण संभव हो जाता है।

योग और मायग्रेन को लेकर रिसर्च कर रहे एम्स के न्यूरोलॉजी के प्रोफेसर डॉ रोहित भाटिया पिछले 3 महीनों से 140 मरीजों पर शोध कर रहे हैं जिसमें दवा के साथ-साथ आधे मरीजों को योग और आधे को सामान्य एक्सरसाइज की सलाह दी गयी। अगले 9 महीनों तक इनपर हो रहे शोध से यह तय हो जाएगा कि योग माइग्रेन पर कंट्रोल करने में कितना कारगर है।

एम्स में पिछले साल ही योग का एक अलग डिपार्टमेंट भी स्थापित किया गया है जिससे योग के क्षेत्र में शोध को एक नई दिशा मिली है। शोधकर्ताओं के मुताबिक अब तक के नतीज़े सकारात्मक हैं।

अस्थमा और सीओपीडी 

इस बीमारी पर हो रही रिसर्च टीम का हिस्सा खुद एम्स के डायरेक्टर डॉ. रणदीप गुलेरिया हैं। उन्होंने बताया कि क्लिनिक में किए गए टेस्ट बताते हैं कि अगर अस्थमा के पेशंट्स 10 दिनों तक सुझाए गए सही योगासन कर लें तो उन्हें बार-बार सांस फूलने की दिक्कत में आराम मिल सकता है। उन्होंने कहा कि सीओपीडी की समस्या से ग्रसित लोगों को भी अगर योगासन करवाया जाए, तो एक ही हफ्ते में इनहेलर की जरूरत कम पड़ती है और बाहर से लगाई जाने वाली ऑक्सीजन में भी कमी आती है। उन्होंने बताया कि इससे मरीज रोजमर्रा की परेशानियों से भी बचा रहता है।

दिल्ली एम्स ने रिसर्च के जरिए यह साबित किया है कि दवा के साथ योग का उपयोग मरीजों के लिए टॉनिक का काम करता है।

 

नई दिल्‍ली, रणविजय सिंह। दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) ने कई शोध करके योग की अहमियत पर मुहर लगा दी है। मोटापा, तनाव, मधुमेह, अस्थमा, ब्लड प्रेशर जैसी बीमारियों के इलाज में दवा के साथ-साथ योग किया जाए तो यह टॉनिक का काम करता है। इसे ध्यान में रखते हुए एम्स यह प्रोटोकॉल तैयार करने में लगा है कि किस बीमारी में योग का कौन सा आसन लाभदायक रहेगा। इसके लिए संस्थान के विभिन्न विभागों में योग से जुड़ी 20 परियोजनाओं पर शोध चल रहा है।

एम्स के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया ने कहा कि संस्थान के सेंटर फॉर इंटिग्रेटिव मेडिसिन एंड रिसर्च के नेतृत्व में विवेकानंद योग अनुसंधान संस्थान के साथ मिलकर योग से जुड़ी परियोजनाओं पर शोध किया जा रहा है। विवेकानंद योग अनुसंधान संस्थान के 10 योग विशेषज्ञ शोध में मदद कर रहे हैं। इसका मकसद योग के फायदों पर साक्ष्य एकत्रित करना है, ताकि इलाज में योग की भी मदद ली जा सके।

योग से अस्थमा पीड़ितों की दवाओं में कमी

डॉ. गुलेरिया ने कहा कि एम्स में अस्थमा के इलाज में योग के इस्तेमाल पर पहले शोध हो चुका है। तब यह पाया गया था कि अस्थमा के मरीजों को दवा व इनहेलर देने के साथ-साथ योग कराया जाए तो फेफड़ा मजबूत होता है और मरीज की दवाएं धीरे-धीरे कम हो जाती हैं। एम्स इस शोध के नतीजों को कनाडा में प्रदर्शित कर चुका है। एक अन्य शोध में यह पाया गया है कि अस्थमा के मरीजों के लिए योग रिहैबिलिटेशन के बराबर कारगर है। रिहैबिलिटेशन की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए कई उपकरणों की जरूरत पड़ती है, जबकि योग में कोई खर्च नहीं है। उन्होंने कहा कि फेफड़े की बीमारी आम होती जा रही है। इलाज के बाद टीबी तो ठीक हो जाती है, लेकिन मरीज के फेफड़े कमजोर हो जाते हैं इसलिए सीओपीडी व टीबी के इलाज में योग के इस्तेमाल पर भी शोध शुरू किया गया है। इसके अलावा हृदय व दिमाग की बीमारियों में योग के इस्तेमाल पर शोध चल रहा है।

खून की गुणवत्ता में भी परिवर्तन

योग से शरीर के अंदर कई तरह के परिवर्तन आते हैं। एम्स में कुछ मरीजों को 12 सप्ताह तक योग कराकर उनके खून की जांच की गई तो पाया गया कि ब्लड प्रेशर, स्ट्रॉक, तनाव आदि बीमारियों के लिए जिम्मेदार मार्कर की कमी आ गई थी।

माइग्रेन के इलाज पर शोध शुरू

देश में माइग्रेन की समस्या बढ़ रही है। इसके मद्देनजर न्यूरोलॉजी विभाग के डॉक्टरों ने माइग्रेन के इलाज में योग के इस्तेमाल पर शोध शुरू किया है। करीब 144 लोगों पर यह शोध किया जा रहा है। इन्हें एक साल तक सप्ताह में तीन दिन योग कराकर उसके नतीजों का परीक्षण किया जाएगा। डॉक्टरों को उम्मीद है कि शोध के नतीजे उत्साहजनक आएंगे। माइग्रेन के अलावा योग मिर्गी के इलाज में कितना लाभकारी है, इस पर भी शोध शुरू किया गया है।

हृदय के मरीजों को भी लाभ

योग हृदय के ऐसे मरीजों के लिए भी उपयोगी है जिनकी बाईपास सर्जरी संभव नहीं होती। एम्स में वर्षो पहले किए गए शोध में यह पाया गया था कि सर्जरी नहीं हो पाने के बावजूद योग ऐसे मरीजों का जीवन बढ़ाने में मददगार है।